कुछ प्रजाति हमारी नजर में आ जाती है, लेकिन जब तक वैज्ञानिक तौर पर उनके डीएनए का मिलान नहीं हो पाता, तब तक वे प्रजातियों के वन्य जीव नामकरण से दूर रहते हैं। हाल ही में डीएनए परीक्षण के बाद गैलापागोस में विशाल कछुए की एक नई प्रजाति की शिनाख्त हो पाई है, जिसमें पाया गया है कि इस द्वीप पर रहने वाले इस कछुए के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था, यहां तक कि विज्ञान से जुड़े लोगों को भी...
इक्वाडोर के पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी जानकारी से सामने आया है कि शोधकर्ताओं ने वर्तमान में सैन क्रिस्टोबल द्वीप पर रहने वाले कछुओं की आनुवंशिक सामग्री की तुलना 1906 में इसी द्वीप के उच्चभूमि(हाईलैंड्स) में एक गुफा से इकट्ठा की गई हड्डियों और बाह्य आवरण (शैल्स) से की, पर दोनों के बीच भिन्नता देखी गई ।
दिलचस्प तथ्य यह भी है
सैन क्रिस्टोबल द्वीप में रहने वाले विशाल कछुए की प्रजाति, जिसे अब तक वैज्ञानिक रूप से चेलोनोइडिस चैथामेंसिस ( Chelonoidis chathamensis) के रूप में पहचाना जाता रहा है, यह आनुवंशिक तौर पर एक अलग प्रजाति का है। असल में, 20वीं सदी के खोजकर्ता इस द्वीप के उत्तर-पूर्व के निचले इलाकों में कभी नहीं पहुंचे, जहां आज ये विशाल जीव रहते हैं और यही वजह रही है कि लगभग 8,000 कछुए एक अलग वंश के मान लिए गए थे।
शोध-कार्य जारी रहेगा
कछुए की इस नई प्रजाति के बारे में किया गया अध्ययन वैज्ञानिक जर्नल 'हैरिडिटी' में प्रकाशित किया गया था। इसमें ब्रिटेन के न्यूकैसल विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका के येल विश्वविद्यालय, अमेरिकी एनजीओ गैलापागोस कंजरवेंसी और अन्य संस्थानों के शोधकर्ता शामिल हुए थे। शोध-दल अपना कार्य जारी रखेगा। वे हड्डियों और बाहरी आवरण से अधिक से अधिक डीएनए प्राप्त करना करना जारी रखेंगे, ताकि वे निर्धारित कर सकें कि 557 किमी. लंबे सैन क्रिस्टोबल द्वीप पर रहने वाले कछुओं को कौन-सा एक नया नाम दिया जाना चाहिए।
सी. चैथामेन्सिस प्रजाति 'लगभग निश्चित रूप से विलुप्त' है और यह कि द्वीप वास्तव में कछुओं की दो अलग-अलग किस्मों का घर रहा है, एक हाइलैंड्स में रहता है और दूसरा तराई में। -गैलापागोस कंजरवेंसी
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